डॉ विजय गर्ग
आज का युग सूचना और प्रौद्योगिकी का है, जहाँ इंटरनेट और सोशल मीडिया (इंटरनेट मीडिया) हमारे जीवन का एक अविभाज्य अंग बन चुके हैं। कंटेंट की बाढ़ है—वीडियो, पोस्ट, रील्स, और लगातार स्क्रॉलिंग। इस डिजिटल शोरगुल के बीच, हम अक्सर एक मूलभूत सत्य को अनदेखा कर देते हैं: इंटरनेट मीडिया कंटैंट केवल एक साधन या क्षणिक मनोरंजन है, जबकि बच्चे (हमारी नई पीढ़ी) हमारे देश का वास्तविक और चिरस्थायी भविष्य हैं।
1. प्राथमिकता का पुनर्निर्धारण
वर्तमान समय में, अधिकांश परिवारों में, बच्चों की स्क्रीन टाइम (इंटरनेट मीडिया के उपभोग) में बेतहाशा वृद्धि हुई है। माता-पिता अक्सर बच्चों को शांत रखने या व्यस्त रखने के लिए उनके हाथ में गैजेट थमा देते हैं। यह व्यवहार दर्शाता है कि हमारी तात्कालिक प्राथमिकता डिजिटल कंटैंट को सहज पहुंच प्रदान करने की हो गई है, न कि बच्चों के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करने की।
चुनौती: कंटेंट की दुनिया मोहक और व्यसनी है। यह बच्चों को केवल उपभोक्ता बना रही है, न कि निर्माता (या विचारक ।
समाधान: हमें यह समझना होगा कि बच्चों के बचपन के ये महत्वपूर्ण वर्ष एक मज़बूत आधारशिला हैं, जिन्हें केवल रचनात्मक मानवीय संपर्क, खेल, किताबें और वास्तविक दुनिया के अनुभवों से ही पोषित किया जा सकता है।
2. मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक कौशल पर प्रभाव
अत्यधिक इंटरनेट मीडिया का उपयोग बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक-भावनात्मक विकास पर गहरा प्रभाव डालता है।
फोमो (गायब होने का डर : सोशल मीडिया पर दूसरों की ‘आदर्श’ जीवनशैली देखकर बच्चे अपने जीवन और आत्म-छवि को लेकर असुरक्षित महसूस कर सकते हैं।
आत्म-छवि : लगातार ‘लाइक’ और सत्यापन की चाहत उनकी आत्म-छवि को बाहरी मापदंडों पर निर्भर कर देती है।
सामाजिक कौशल में कमी: वास्तविक दुनिया के दोस्तों के साथ खेलना, विवादों को सुलझाना, और भावनात्मक संकेतों को समझना – ये सभी महत्वपूर्ण सामाजिक कौशल ऑनलाइन इंटरैक्शन में विकसित नहीं हो पाते।
3. सुरक्षा और डिजिटल साक्षरता
सोशल मीडिया के भविष्य में 18 साल से कम उम्र के लोगों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाली अधिक सुविधाएँ आ सकती हैं, जैसे माता-पिता का नियंत्रण। लेकिन केवल तकनीक पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है।
सकारात्मक दृष्टिकोण: इंटरनेट केवल खतरा नहीं है; यह ज्ञान का एक विशाल भंडार भी है।
आवश्यकता: हमें बच्चों को केवल कंटैंट से दूर रखने के बजाय, उन्हें जिम्मेदार डिजिटल नागरिक बनाना होगा। उन्हें यह सिखाना होगा कि ऑनलाइन क्या सुरक्षित है और क्या असुरक्षित (ऑनलाइन सुरक्षा), फर्जी खबरों को कैसे पहचानें, और अपनी व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा कैसे करें (डिजिटल साक्षरता)। यह शिक्षा ही उन्हें भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करेगी।
4. निवेश: भविष्य की पीढ़ी में
देश का भविष्य किसी एल्गोरिथम या ट्रेंडिंग हैशटैग पर निर्भर नहीं है; यह हमारे बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा, नैतिक मूल्यों और क्षमताओं पर निर्भर करता है।
समय का निवेश: माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों के साथ सार्थक समय बिताना चाहिए। उन्हें उनकी रुचियों को पहचानने और विकसित करने में मदद करनी चाहिए, चाहे वह विज्ञान हो, कला हो, या खेल।
मूल्यों का निवेश: शिक्षा प्रणाली में नैतिक और मानवीय मूल्यों (जैसे करुणा, सहयोग, सत्यनिष्ठा) पर जोर दिया जाना चाहिए, ताकि वे एक समावेशी और मजबूत समाज का निर्माण कर सकें।
निष्कर्ष
यह समय है कि हम एक समाज के रूप में अपनी प्राथमिकताओं को फिर से जाँचें। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम अपने बच्चों को डिजिटल दुनिया के सेवक नहीं, बल्कि उसके मालिक बनने के लिए प्रशिक्षित करें।
इंटरनेट मीडिया कंटैंट क्षणभंगुर है, लेकिन हमारे बच्चे देश की सबसे अमूल्य संपत्ति हैं। उनका संपूर्ण विकास ही भारत के एक सशक्त, समृद्ध और नैतिक भविष्य की गारंटी है। हमें कंटैंट को प्राथमिकता देना बंद करके, मानव पूंजी पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करना होगा।
डॉ विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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