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ज़हरीले पानी से प्रवासी पक्षियों के जीवन पर संकट -डा विजय गर्ग 

News-Desk by News-Desk
December 7, 2025
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ज़हरीले पानी से प्रवासी पक्षियों के जीवन पर संकट -डा विजय गर्ग 




राजस्थान की साम्भर झील कई वर्षों से प्रवासी पक्षियों के लिए मौत का मैदान बनती जा रही है। वर्ष 2019 में यहां हजारों पक्षी मरे, पिछले वर्ष लगभग 200 और इस साल भी करीब 70 पक्षियों के शव मिले। मारे गए पक्षियों की जांच के लिए सेंटर फॉर एनिमल डिजीज रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक्स लैब, बरेली को भेजे गए सैंपलों से पुष्टि हुई कि इन मौतों का मुख्य कारण एवियन बोटुलिज़्म ही है, जो लगातार झील में पक्षियों के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है।

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भारत में विदेशी पक्षियों के लिए सबसे बड़े ठिकाने में से एक साम्भर झील में आने वाले मेहमानों की संख्या लगातार घट रही है। वैसे यहां कोई ढाई सौ प्रजातियों के पक्षी आते रहे हैं, लेकिन इस बार यह संख्या 110 ही रही है। सभी जानते हैं कि आर्कटिक क्षेत्र और उत्तरी ध्रुव में जब तापमान शून्य से चालीस डिग्री तक नीचे जाने लगता है, तो वहां के पक्षी भारत की ओर आ जाते हैं। ऐसा हजारों साल से हो रहा है, ये पक्षी किस तरह रास्ता पहचानते हैं, किस तरह हजारों किलोमीटर उड़कर आते हैं, विज्ञान के लिए भी अनसुलझी पहेली है

भारत की सबसे विशाल खारे पानी की झील ‘साम्भर’ का विस्तार 190 किलोमीटर, लंबाई 22.5 किलोमीटर है। इसकी अधिकतम गहराई तीन मीटर तक है। अरावली पर्वतमाला की आड़ में स्थित यह झील राजस्थान के तीन जिलों—जयपुर, अजमेर और नागौर तक विस्तारित है। अब यह झील 4700 वर्ग किमी में सिमट गई है। चूंकि भारत में नमक के कुल उत्पादन का लगभग नौ प्रतिशत- 196000 टन नमक यहां से निकाला जाता है, अतः नमक-माफिया भी यहां की ज़मीन पर कब्जा करता रहता है। इस विशाल झील के पानी में खारेपन का संतुलन बनाए रखने के लिए इसमें छोटी नदियों से मीठा पानी लगातार मिलता रहता है तो उत्तर में कांतली, पूर्व में बांदी, दक्षिण में मासी और पश्चिम में लूणी नदी में इससे बाहर निकला पानी जाता रहा है। दीपावली के बाद यहां विदेशी पक्षियों के झुंड आने शुरू हो जाते हैं।

पक्षियों में एवियन बॉटुलिज़्म नामक रोग मूल रूप से मांसाहारी नभचरों में होता है। यह बीमारी क्लोस्ट्रिडियम बॉट्यूलिज़्म नामक बैक्टीरिया की वजह से फैलती है। यहां साम्भर झील के जल में लगातार प्रदूषण की मात्रा बढ़ने से भी यह स्थान पक्षियों के लिए सुरक्षित नहीं रहा है। यहां पर पक्षियों की मौत का एक कारण ‘हाईपर न्यूट्रिनिया’ भी रहा है। नमकीन जल में सोडियम की मात्रा ज्यादा होने पर, पक्षियों के तंत्रिका तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वे खाना-पीना छोड़ देते हैं। उनके पंख एवं पैरों में लकवा हो जाता है। अंत में प्राण निकल जाते हैं। अभी तक तो पक्षियों की प्रारंभिक मौत हाईपर न्यूट्रिनिया से ही हुई। बाद में उनमें एवियन बॉटुलिज़्म के जीवाणु विकसित हुए और ऐसे मरे पक्षियों को जब अन्य पक्षियों ने भक्षण किया तो बड़ी संख्या में उनकी मौत हुई।

पक्षी विशेषज्ञ के मुताबिक साल 2025 में त्रासदी का प्रारंभ साम्भर के नामक वाले इलाके से हुआ है। औद्योगिक अपशिष्ट, जिसमें भारी धातुएं और रासायनिक तत्व होते हैं, पक्षियों की तंत्रिका प्रणाली को प्रभावित करता है। नमक की उच्च सांद्रता से पक्षियों के पंखों पर क्रिस्टल जम जाते हैं, जिससे हाइपोथर्मिया या डूबने से मौत हो जाती है।

वर्ष 2010 में भी पक्षियों की मौत के बाद गठित कपूर समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों पर अमल नहीं हुआ। दो साल पहले भी हाई कोर्ट ने साम्भर झील को रामसर साइट घोषित किए जाने के बाद यानी 24 मार्च, 1990 के बाद इस झील पर दी गई लीज, निर्माण, अवैध कब्जों की जानकारी और झील को अतिक्रमण से बचाने के उपायों की भी जानकारी मांगी है। सरकार की आधी-अधूरी जानकारी के चलते झील का पानी और खराब होता गया। साम्भर झील के पर्यावरण के साथ लंबे समय से की जा रही छेड़छाड़ भी पक्षियों के यहां से मुंह मोड़ने का बड़ा कारण है। एक तो साम्भर साल्ट लिमिटेड ने नमक निकालने के ठेके कई कंपनियों को दे दिए जो मानकों की परवाह किए बगैर गहरे कुएं और झील के किनारे दूर तक नमकीन पानी एकत्र करने की खाई बना रहे हैं। वहीं परिशोधन के बाद गंदगी को इसी में डाल दिया जाता है। यहां किसी भी नगर कस्बे में घरों से निकलने वाले गंदे पानी को परिष्कृत करने की व्यवस्था नहीं है और हजारों लीटर गंदा-रासायनिक पानी हर दिन इस झील में मिल रहा है।

यह जलवायु परिवर्तन की त्रासदी है कि इस साल औसत से कोई 46 प्रतिशत ज्यादा पानी बरसा। इससे झील के जल ग्रहण क्षेत्र का विस्तार हो गया। चूंकि इस झील में नदियों से मीठा पानी की आवक और अतिरिक्त खारे पानी को नदियों में मिलने वाले मार्गों पर अतिक्रमण हो गए हैं, सो पानी में क्षारीयता का स्तर नैसर्गिक नहीं रह पाया। भारी बरसात के बाद यहां तापमान फिर से 27 डिग्री के पार चला गया। इससे पानी का क्षेत्र सिकुड़ा और उसमें नमक की मात्रा बढ़ गई, जिसका असर झील के जलचरों पर भी पड़ा।

उल्लेखनीय है कि साम्भर साल्ट लिमिटेड ने झील के एक हिस्से को एक रिसॉर्ट को दे दिया है। यहां का सारा गंदा पानी इसी झील में मिलाया जाता है। इसके अलावा कुछ सौर ऊर्जा परियोजनाएं और फिर तालाब की मछली का ठेका भी दिया हुआ है। जब पक्षी को ताजा मछली नहीं मिलती तो वह झील में तैर रही गंदगी को खाने लगता है। यह सब बातें भी पक्षियों के इम्यून सिस्टम के कमजोर होने व उनके सहजता से विषाणु के शिकार हो जाने का कारक हैं।

डॉ विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब

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