बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से उनकी तत्काल वापसी की औपचारिक मांग की है।
नई दिल्ली/ढाका (एजेंसी ):भारत में शरण लिए हुए बांग्ला देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को हिंसा मामले में मौत की सजा सुनाई गयी है। मौत की सजा सुनाके के ऐलान के कुछ घंटों बाद ही बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से उनकी तत्काल वापसी की औपचारिक मांग की है।
सोमवार को बांग्लादेश ने भारत से अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल को तुरंत सौंपने का अनुरोध किया। बांग्लादेश ने कहा कि दोनों देशों के बीच 2013 में हुई द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि (Extradition Treaty) के तहत नई दिल्ली ऐसा करने के लिए बाध्य है।
यह मांग बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल (ICT) द्वारा पिछले साल देशव्यापी छात्र विद्रोह पर हिंसक कार्रवाई, जिसे ‘जुलाई नरसंहार’ कहा जा रहा है, में कथित भूमिका के लिए शेख हसीना और कमाल को ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ में दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाए जाने के बाद आई है।
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने एक कड़ा बयान जारी करते हुए कहा, “अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने दोनों को जुलाई नरसंहार के लिए मानवता के खिलाफ अपराध में दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई है। इन फरार दोषियों को अगर कोई देश पनाह देता है, तो यह अत्यंत शत्रुतापूर्ण कृत्य होगा और न्याय की अवहेलना मानी जाएगी।”
मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि 5 अगस्त 2024 से नई दिल्ली में शरण लिए हुए शेख हसीना और असदुज्जमां खान कमाल पर लगे आरोपों की गंभीरता को देखते हुए बांग्लादेश को उम्मीद है कि भारत उसकी कानूनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करेगा।
बयान में कहा गया, “दोनों देशों के बीच मौजूदा प्रत्यर्पण संधि के तहत इन दोषियों को बांग्लादेश को सौंपना भारत का अनिवार्य कर्तव्य है। हम भारत सरकार से इन दोनों को तुरंत बांग्लादेशी अधिकारियों के हवाले करने की अपील करते हैं।”
प्रत्यर्पण मांग पर भारत की सधी हुई प्रतिक्रिया
बांग्लादेश की इस सीधी मांग पर भारत के विदेश मंत्रालय ने सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। भारत ने अपने बयान में शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग का सीधे तौर पर जिक्र नहीं किया।
विदेश मंत्रालय ने कहा, “एक करीबी पड़ोसी होने के नाते हम बांग्लादेश में शांति, लोकतंत्र, समावेशिता और राजनीतिक स्थिरता सहित वहां के लोगों के सर्वोत्तम हितों के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम बांग्लादेश में सभी हितधारकों के साथ रचनात्मक रूप से बातचीत करेंगे।”
क्या है 2013 की प्रत्यर्पण संधि और इसका ‘पेंच’?
भारत और बांग्लादेश के बीच 28 जनवरी 2013 को ढाका में लागू हुई प्रत्यर्पण संधि का मुख्य उद्देश्य आतंकवाद, उग्रवाद और संगठित अपराध से निपटना है। यह संधि उन अपराधों के लिए प्रत्यर्पण की अनुमति देती है जिनमें न्यूनतम सजा एक वर्ष से अधिक हो और वह कृत्य दोनों देशों में दंडनीय (Dual Criminality) माना जाता हो; 2016 में एक संशोधन ने प्रक्रिया को सरल बनाते हुए केवल गिरफ्तारी वारंट को पर्याप्त बना दिया था। हालांकि, इस संधि में कुछ महत्वपूर्ण अपवाद भी हैं, विशेषकर अनुच्छेद 6 और 7 के तहत, जो इस मामले में अहम हो सकते हैं।
संधि स्पष्ट करती है कि राजनीतिक अपराधों या धार्मिक अपराधों के लिए प्रत्यर्पण नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त, यदि भारत (उत्तरदायी देश) यह मानता है कि प्रत्यर्पण की मांग “राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित” है या “अच्छे विश्वास” से नहीं की गई है, तो वह अनुरोध को अस्वीकार कर सकता है। यह संधि (दोहरी सजा का निषेध) के कानूनी सिद्धांत का भी सम्मान करती है, जिसका अर्थ है कि यदि व्यक्ति पर उसी अपराध के लिए पहले ही मुकदमा चल चुका हो, तो उसे दोबारा प्रत्यर्पित नहीं किया जा सकता।
भारत का सधा हुआ बयान और प्रत्यर्पण पर सीधी टिप्पणी न करना, यह दर्शाता है कि वह इस मामले को प्रत्यर्पण संधि के इन्हीं राजनीतिक अपवादों के तहत देख सकता है।
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