महिलाओं की बढ़ती वित्तीय भागीदारी- विजय गर्ग
भारतीय अर्थव्यवस्था में हाल के वर्षों में कई महत्त्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं, जिनमें से एक है ‘महिलाओं की वित्तीय बाजार में बढ़ती भागीदारी। शेयर बाजार में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है, जो देश के आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य में परिवर्तन को दर्शाता है। यह बदलाव स्मार्टफोन की व्यापक पहुंच, डिजिटल कोराबार मंचों की सहजता और वित्तीय साक्षरता में तेजी से हो रही वृद्धि के कारण संभव हुआ है। पहले जहां महिलाएं पारंपरिक बचत साधनों तक ही सीमित थीं, वहीं अब वे शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड और इक्विटी जैसे निवेश विकल्पों को अपना कर धन-संपदा बढ़ाने की दिशा में अहम योगदान दे रही हैं। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्वतंत्रता परिलक्षित होती है, बल्कि वित्तीय समावेशन और समानता की दिशा में भी मजबूत कदम है।
नेशनल स्टाक एक्सचेंज के आंकड़ों के अनुसार, भारत में महिला निवेशकों की संख्या 22 फीसद से अधिक हो गई है, जो वर्ष 2015 के मुकाबले 6.8 गुना अधिक है। यह वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि महिलाएं अब निवेश के क्षेत्र में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं। भारतीय स्टेट बैंक की एक रपट में भी इस बदलाव की पुष्टि की गई है। इसमें बताया गया है कि 2021 से हर साल औसतन तीन करोड़ नए डीमैट खाते खोले जा रहे हैं, जिनमें से | लगभग हर चौथा खाता महिला निवेशक के नाम पर है। यह बदलाव दर्शाता है कि महिलाएं न केवल वित्तीय निर्णय लेने में सक्षम हो रही बल्कि जोखिम प्रबंधन और धन सृजन में भी बड़ी भूमिका निभा रही हैं। अक्तूबर 2023 तक के आंकड़ों अनुसार देश में कुल 10.55 करोड़ व्यक्तिगत निवेशकों में से 2.52 करोड़ महिलाएं हैं, जो कुल हिस्सेदारी का लगभग 23.9 फीसद है। निवेशकों के पंजीकरण के मामले में महाराष्ट्र तमिलनाडु, गुजरात और केरल जैसे राज्यों में महिला निवेशकों की हिस्सेदारी 27 फीसद तक है, जबकि दिल्ली में यह आंकड़ा 29.8 फीसद तक पहुंच गया है। गोवा में महिला निवेशकों का हिस्सा सबसे अधिक, 32 फीसद दर्ज किया गया है। यह वृद्धि केवल महानगरों तक सीमित नहीं है, छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में भी महिलाएं निवेश के प्रति जागरूक हो हो रही हैं।
महिलाओं की वित्तीय स्वायत्तता का प्रमाण हालिया अध्ययनों से पता चलता है। 47 फीसद महिलाएं अपने वित्तीय निर्णय स्वयं ले रही हैं। इस स्वायत्तता ने म्यूचुअल फंड और इक्विटी में उनकी भागीदारी को और मजबूत किया है। पिछले पांच वर्षों में भारत की महिला श्रमशक्ति भागीदारी 24.5 फीसद से बढ़ कर 41.7 फीसद हो गई है, जो न केवल आर्थिक, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक बड़ा बदलाव है। वर्ष 2019 से 2024 के बीच कामकाजी महिलाओं की संख्या में भी जबर्दस्त इजाफा हुआ है। यह संख्या 11 करोड़ से बढ़ कर 21 करोड़ तक पहुंच गई है, जो महिलाओं के बढ़ते आत्मविश्वास और सशक्तीकरण का परिचायक है। इस परिवर्तन के पीछे एक प्रमुख कारण उच्च शिक्षा में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी है। वर्ष 2015 में जहां 1.57 करोड़ महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही थीं, वहीं 2022 तक यह संख्या 2.07 करोड़ हो गई है, जो 31.6 फीसद की वृद्धि को दर्शाता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति और डिजिटल साक्षरता अभियानों ने महिलाओं को आधुनिक कौशल से लैस किया है, जिससे वे अधिक आत्मनिर्भर बनी और वित्तीय निर्णय लेने में सक्षम हो पाई हैं।
महिलाओं की बढ़ती वित्तीय भागीदारी का प्रभाव ग्रामीण इलाकों में भी देखा जा सकता है। डिजिटल तकनीक और आनलाइन निवेश मंचों की सुलभता ने महिलाओं के लिए शेयर बाजार प्रवेश को आसान बना दिया है। साथ ही, पिछले कुछ वर्षों में सरकार और निजी संस्थानों द्वारा वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए चलाए गए अभियानों ने भी महिलाओं को आर्थिक निर्णय लेने में अधिक सक्षम बनाया है। इस बदलाव के संदर्भ में नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस का कथन उल्लेखनीय है, ‘गरीबी इतिहास के संग्रहालय का हिस्सा बन सकती है, यदि महिलाओं को वित्तीय रूप से सशक्त बनाया जाए।’ महिलाओं की बढ़ती आर्थिक भूमिका इस विचार को साकार करने की दिशा में एक मजबूत कदम है। महिलाओं का वित्तीय समावेशन देश की आर्थिक प्रगति के लिए एक महत्त्वपूर्ण कारक बन गया है। बैंकिंग और अन्य संगठित वित्तीय क्षेत्रों में उनकी सक्रिय भागीदारी से न केवल पारिवारिक बचत दर में वृद्धि हुई है, बल्कि यह विविध और स्थिर निवेश के अवसरों को भी बढ़ावा देता है। पहले महिलाएं वित्तीय फैसलों में झिझकती थीं, पर अब वे निवेश के विभिन्न साधनों से अपने धन को बढ़ाने में सक्रियता दिखा रही हैं।
माइक्रो फाइनेंस संस्थान के आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं अपनी निवेश योग्य संपत्ति का लगभग 51 फीसद ‘फिक्स्ड डिपाजिट’ और बचत खातों में रखती हैं, जबकि सोना और जमीन-जायदाद जैसे सुरक्षित निवेश विकल्पों में भी उनकी मजबूत उपस्थिति है। हालांकि, अब वे दीर्घकालिक लाभ को पहचानते हुए इक्विटी निवेश की ओर भी आकर्षित हो रही हैं। यह प्रवृत्ति न केवल उनके व्यक्तिगत सशक्तीकरण के लिए, बल्कि देश के समग्र आर्थिक विकास के लिए भी लाभकारी है।
विडंबना है कि देश में एक प्रमुख चुनौती कार्यस्थल पर वेतन असमानता की है। भारत में महिलाओं को परुषों की को पुरुषों की तुलना में में औसतन 19 फीसद कम वेतन मिलता है, जिससे उनके निवेश योग्य धन की मात्रा सीमित हो जाती है। इसके अतिरिक्त, पारंपरिक मानसिकता के कारण महिलाओं को उच्च जोखिम वाले निवेश से दूर रहने की सलाह दी जाती है, जिससे वे अपेक्षाकृत सुरक्षित, लेकिन कम लाभ देने वाले विकल्पों तक सीमित रह जाती हैं। अब समय आ गया है कि महिलाओं की वित्तीय साक्षरता को और अधिक बढ़ावा दिया जाए और उन्हें निवेश के उन्नत विकल्पों के बारे में जागरूक किया जाए। सरकार और निजी क्षेत्र को मिल कर ऐसी पहल करनी चाहिए, जिससे महिलाओं को आर्थिक रूप से अधिक स्वतंत्र बनाया जा सके। स्वयं सहायता समूहों, माइक्रो फाइनेंस और डिजिटल वित्तीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं को सही निवेश रणनीतियों की जानकारी दी जाए।
जब महिलाओं की वित्तीय स्वतंत्रता केवल उनकी व्यक्तिगत समृद्धि तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समग्र आर्थिक विकास में भी योगदान दे रही है। महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होती हैं, तो वे न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत करती, बल्कि समाज में भी एक सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम होती हैं। यदि महिलाओं को सही वित्तीय जानकारी मिलती है, तो वे अधिक प्रभावी निवेशक बन सकती हैं और भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकती हैं। यह व्यक्तिगत या पारिवारिक स्तर पर ही नहीं, राष्ट्रीय विकास के लिए भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अब समय आ गया है कि महिलाएं इस आर्थिक स्वतंत्रता के अवसर का अधिक से अधिक लाभ उठाएं और अपने निवेश के फैसलों में आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें। उनके इस योगदान से न केवल उनकी अपनी स्थिति सशक्त होगी, बल्कि इससे समाज और राष्ट्र के विकास की नई राहें भी खुलेंगी। भारत एक समावेशी और स्थिर अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर होगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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