लिथियम डील से चमकेगा भारत! चिली संग मोदी ने खेला ट्रंप कार्ड
नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के लिए भारत ने लैटिन अमेरिका में बनाई नई राह
चिली के राष्ट्रपति गेब्रियल बोरिक फॉन्ट की भारत यात्रा बड़े रणनीतिक और आर्थिक समझौतों की गवाह बनी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद हाउस में उनका स्वागत किया और दोनों देशों ने व्यापक आर्थिक साझेदारी पर बातचीत शुरू करने का फैसला किया। भारत और चिली ने विशेष रूप से क्रिटिकल मिनरल्स—जिनमें लिथियम सबसे अहम है—को लेकर एक महत्वपूर्ण MoU (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किए हैं।
भारत के लिए क्यों जरूरी है चिली?
चिली दुनिया का सबसे बड़ा कॉपर उत्पादक है और लिथियम भंडार के मामले में भी अग्रणी देशों में शामिल है। भारत, जो इलेक्ट्रिक व्हीकल और बैटरी टेक्नोलॉजी में तेजी से आगे बढ़ रहा है, के लिए यह डील बेहद अहम मानी जा रही है। विदेश मंत्रालय के सेक्रेटरी (पूर्व) पेरियासामी कुमारन ने बताया कि क्रिटिकल मिनरल्स की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए भारत ने यह समझौता किया है। अब आगे टेक्निकल टीमों के स्तर पर बातचीत होगी कि इस साझेदारी को कैसे और मजबूत किया जाए।
भारत-चिली रिश्तों में नया आयाम
मोदी सरकार चिली को अंटार्कटिका के प्रवेश द्वार के रूप में देख रही है और वहां डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, नवीकरणीय ऊर्जा, रेलवे और अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए तैयार है। यह साझेदारी न सिर्फ भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगी, बल्कि लैटिन अमेरिका में भारत की कूटनीतिक स्थिति को भी सुदृढ़ करेगी।
क्या मिलेगा भारत को फायदा?
लिथियम डील भारत को इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकती है। इसके अलावा, चिली के साथ यह सहयोग तकनीकी, व्यापारिक और पर्यावरणीय मोर्चे पर भी भारत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकता है। इस समझौते के साथ भारत ने साफ कर दिया है कि वह ऊर्जा और खनिज संसाधनों के क्षेत्र में किसी पर निर्भर नहीं रहेगा और अपने दम पर नई वैश्विक संभावनाओं की ओर बढ़ेगा।













