डॉ विजय गर्ग
शरीर के भीतर छिपे रोगों का रहस्य अब खून की जांच, एक्सरे या लंबी रिपोटों में नहीं, बल्कि आंख की रेटिना की सूक्ष्म नसों से जाना जा सकेगा। आइआइटी- बीएचयू के डिपार्टमेंट आफ मैथमेटिकल साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. राजेश कुमार पांडेय ने एक स्वचालित कंप्यूटर तकनीक विकसित की है, जो रेटिना की सबसे बारीक रक्त वाहिकाओं को स्पष्ट रूप पहचानने में सक्षम है। ये नसे संकेत देती हैं कि शरीर में मधुमेह, रक्तचाप और धमनी काठिन्य (आरियोस्क्लेरोसिस) जैसे रोग चुपचाप पनप रहे हैं।
शोधकर्ता डा. राजेश पांडेय बताते हैं कि यह तकनीक ‘पंक्चर्ड विंडो एल्गोरिदम पर आधारित है। यह कम रोशनी और कम कंट्रास्ट वाली छवियों में भी नसों को उभारने में सफल होती है, जबकि पारंपरिक तकनीकें असफल हो जाती हैं। लंदन स्थित पब्लिकेशन एल्सेवियर के प्रतिष्ठित जर्नल कंप्यूटर इन बायोलाजी मेडिसिन में प्रकाशित इस शोध की चर्चा मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआइटी) में आयोजित सेमिनार में भी हुई। वह बताते हैं कि पेटेंट की ओर बढ़ रहा यह शोध चिकित्सा निदान की दुनिया में नई क्रांति का संकेत दे रहा है। मानव रेटिना की रक्त वाहिकाएं बेहद पतली और मुड़ी तुड़ी होती हैं। सामान्य परिस्थितियों में खासकर कम रोशनी या कम कंट्रास्ट वाली तस्वीरों में इन्हें पहचानना कठिन हो जाता है। अब तक के पारंपरिक लाइन डिटेक्टर एल्गोरिदम इन नसों की पहचान में अक्सर चूक जाते थे।
इन तकनीकों की कमजोरी थी कि वे छवि की पृष्ठभूमि को गलत तरीके से समझ लेती थीं, जिससे नसों की वास्तविक आकृति और मोटाई सामने नहीं आ पाती थी। डा. पांडेय ने इस कमजोरी को चुनौती के रूप में स्वीकार किया और समाधान पंक्चर्ड विंडो एल्गोरिदम’ से खोजा यह एल्गोरिदम आंखों के भीतर मौजूद बेहद पतली और मुश्किल से दिखाई देने वाली रक्त वाहिकाओं को अत्यंत स्पष्टता से पहचान सकती है। रक्त वाहिकाओं में होने वाले सूक्ष्म बदलाव संपूर्ण स्वास्थ्य की स्थिति को दर्शाते हैं। चिकित्सा विज्ञान मान चुका है कि रेटिना की नसें शरीर के दूसरे अंगों में होने वाले परिवर्तनों की झलक देती हैं। मधुमेह, बीपी, धमनी काठिन्य और हृदय संबंधी रोग अक्सर रेटिना की नसों में पहले दिखाई देते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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